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Gandhari/गांधारी

Gandhari/गांधारी

Rekha Agrawal/रेखा अग्रवाल
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गांधार एक छोटा-सा राज्य था, जिसके शासक थे महाराजा सुबल। उन्हीं की सुंदर पुत्री गांधारी सुदूर हस्तिनापुर के राजमहल में बहू बनकर आई और आते ही उस नवयौवना नवविवाहिता के सारे सपने उस समय चकनाचूर हो गए, जब उसने अपने सपनों के सम्राट चक्षुहीन धृतराष्ट्र को पराश्रित पाया। उसे भी जीवन-भर आँखों पर पट्टी बाँधनी पड़ी और अपने को ठगा-सा महसूस किया। इस उपन्यास में कहीं वह एक असहाय स्त्री लगती है, तो कहीं शक्ति संपन्न माँ, जो कूटजाल में व्यस्त पुत्र पर बौखला उठती हैं। हस्तिनापुर की दीवारें बड़ी मोटी और अभेद्य पत्थरों से बनी हुई थीं, किंतु इतनी भी अभेद्य नहीं थीं कि गांधारी जैसी नारी की मानवीय संवेदनाएँ उसमें समा जातीं; उन्हीं संवेदनाओं का आत्मकथात्मक शैली में जीवंत वर्णन है इस रचना में, जो आपको सीधा महाभारत के युग में ले जाकर खड़ा कर देगा।

Imprint: Penguin Swadesh

Published: Oct/2024

ISBN: 9780143471509

Length : 172 Pages

MRP : ₹199.00

Gandhari/गांधारी

Rekha Agrawal/रेखा अग्रवाल

गांधार एक छोटा-सा राज्य था, जिसके शासक थे महाराजा सुबल। उन्हीं की सुंदर पुत्री गांधारी सुदूर हस्तिनापुर के राजमहल में बहू बनकर आई और आते ही उस नवयौवना नवविवाहिता के सारे सपने उस समय चकनाचूर हो गए, जब उसने अपने सपनों के सम्राट चक्षुहीन धृतराष्ट्र को पराश्रित पाया। उसे भी जीवन-भर आँखों पर पट्टी बाँधनी पड़ी और अपने को ठगा-सा महसूस किया। इस उपन्यास में कहीं वह एक असहाय स्त्री लगती है, तो कहीं शक्ति संपन्न माँ, जो कूटजाल में व्यस्त पुत्र पर बौखला उठती हैं। हस्तिनापुर की दीवारें बड़ी मोटी और अभेद्य पत्थरों से बनी हुई थीं, किंतु इतनी भी अभेद्य नहीं थीं कि गांधारी जैसी नारी की मानवीय संवेदनाएँ उसमें समा जातीं; उन्हीं संवेदनाओं का आत्मकथात्मक शैली में जीवंत वर्णन है इस रचना में, जो आपको सीधा महाभारत के युग में ले जाकर खड़ा कर देगा।

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