क्या आप जानते हैं कि पिंडर घाटी कहाँ है, जोती कौन है, वहाँ की ज़िन्दगी, धाराएँ और ऊँचाइयाँ कैसी हैं?
क्या आप जानते हैं कि पर्वतारोहण के रोमांच भरे खेल का रास्ता किन लोगों की पीठ पर से होकर गुज़रता है?
एक आदमी पहाड़ की बिन बिजली.सड़क.मोबाइल वाली घाटी में प्राइमरी के बच्चों को पढ़ाने जाता है जो दानपुरी बोली और हिन्दी भाषा के बीच पड़ने वाले जंगल में फँसे हुए हैं। यहाँ फसले हँसिया युग से पहले के औज़ारों से काटी जाती हैं, मुसाफ़िरों के भूत दर्द से फटते पैर सेंकने के लिए नमक और गरम पानी मांगने आते हैं, बादल मासिक.धर्म के कारण फटते हैं, भगवान भक्त को अपना मोबाइल नम्बर दे जाते हैं, बच्चे थाली में बैठकर बर्फ़ पर स्कीईंग करते हैं, जवान अपने खेत नहीं पहचानते और सपने, मैदानों के जैसी बराबर ज़मीन पर चलने के आते हैं।
तीन ग्लेशियरों के तिराहे पर बसी इस घाटी में भटकते हुए वह धीरे.धीरे कीड़ाजड़ी निकालने वालों, आदिम पर्वतारोहियों, स्मगलरों, दलालों, अनवालों और जागरियों के संसार में खो जाता है। वह हैरान आँखों से देखता है कि कामेच्छा, ‘विकास’ की लीला वहाँ भी रच सकती है जहाँ पहुँचने में सरकारें भी झेंपती हैं।
अनिल यादव का एक ट्रैवलॉग वह भी कोई देस है महराज दस साल पहले आया था। अब पिंडर नदी के धगधग प्रवाह जैसा यह दूसरा . . .
Imprint: Hind Pocket Books
Published: Nov/2022
ISBN: 9780143453734
Length : 209 Pages
MRP : ₹250.00