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Manoj Bajpayee/मनोज बाजपेयी

Manoj Bajpayee/मनोज बाजपेयी

Kuch Pane Ki Zid/कुछ पाने की ज़िद

Piyush Pandey/पीयूष पांडे
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Paperback / Hardback

मनोज बाजपेयी नए जमाने के गिनेचुने कलाकारों में से हैं जिन्होंने कम उम्र में ही हिंदी सिनेमा में एक बड़ा कद हासिल कर लिया था। दिग्गज कलाकार और फिल्म समीक्षक उनके अभिनय का लोहा मानते हैं। दर्शक उनके नाम पर थियेटर जाते हैं और वे जानते हैं कि बाजपेयी सिर्फ अपने मन की फिल्में करते हैं। मनोज बाजपेयी की यह जीवनी अभिनय को लेकर उनके ज़िद और जुनून की कहानी है जिसमें पाठकों को कई नई बातें पता लगेंगी, मसलन– बाजपेयी के पिता भी पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट में ऑडिशन का टेस्ट देने गए थे, उनके पूर्वज अंग्रेजी राज के एक दमनकारी किसान कानून की वजह से उत्तर प्रदेश के रायबरेली से चंपारण आए थे और ये भी कि मनोज बाजपेयी का बचपन उस गाँव में बीता है जहाँ महात्मा गांधी ने अपने प्रसिद्ध चंपारण सत्याग्रह के दौरान एक रात्रि विश्राम किया था और फिल्म सत्या के भीखू म्हात्रे का चरित्र मनोज के गृहनगर बेतिया के एक शख्स से प्रेरित था, वगैरह-वगैरह। मनोज बाजेपेयी की यह जीवनी वरिष्ठ टीवी पत्रकार पियूष पांडे ने लिखी है जो उनसे एक दशक से ज़्यादा से जुड़े रहे हैं और ऐसी घटनाओं और किस्सों के गवाह हैं जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। मनोज बाजपेयी और उनके सिनेमाई सफ़र को जानने के लिए यह एक ज़रूरी पुस्तक है।

Imprint: India Penguin

Published: Jan/2022

ISBN: 9780143451211

Length : 240 Pages

MRP : ₹299.00

Manoj Bajpayee/मनोज बाजपेयी

Kuch Pane Ki Zid/कुछ पाने की ज़िद

Piyush Pandey/पीयूष पांडे

मनोज बाजपेयी नए जमाने के गिनेचुने कलाकारों में से हैं जिन्होंने कम उम्र में ही हिंदी सिनेमा में एक बड़ा कद हासिल कर लिया था। दिग्गज कलाकार और फिल्म समीक्षक उनके अभिनय का लोहा मानते हैं। दर्शक उनके नाम पर थियेटर जाते हैं और वे जानते हैं कि बाजपेयी सिर्फ अपने मन की फिल्में करते हैं। मनोज बाजपेयी की यह जीवनी अभिनय को लेकर उनके ज़िद और जुनून की कहानी है जिसमें पाठकों को कई नई बातें पता लगेंगी, मसलन– बाजपेयी के पिता भी पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट में ऑडिशन का टेस्ट देने गए थे, उनके पूर्वज अंग्रेजी राज के एक दमनकारी किसान कानून की वजह से उत्तर प्रदेश के रायबरेली से चंपारण आए थे और ये भी कि मनोज बाजपेयी का बचपन उस गाँव में बीता है जहाँ महात्मा गांधी ने अपने प्रसिद्ध चंपारण सत्याग्रह के दौरान एक रात्रि विश्राम किया था और फिल्म सत्या के भीखू म्हात्रे का चरित्र मनोज के गृहनगर बेतिया के एक शख्स से प्रेरित था, वगैरह-वगैरह। मनोज बाजेपेयी की यह जीवनी वरिष्ठ टीवी पत्रकार पियूष पांडे ने लिखी है जो उनसे एक दशक से ज़्यादा से जुड़े रहे हैं और ऐसी घटनाओं और किस्सों के गवाह हैं जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। मनोज बाजपेयी और उनके सिनेमाई सफ़र को जानने के लिए यह एक ज़रूरी पुस्तक है।

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